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सामान्य ज्ञान फ़तेह सीरीज (पार्ट 4)

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 * पृष्ठभूमि: औरंगजेब ने 1679 में जजिया कर को फिर से लागू कर दिया, जिसका महाराणा राज सिंह ने विरोध किया। इसके अतिरिक्त, औरंगजेब ने किशनगढ़ की राजकुमारी चारुमती से विवाह करने का प्रयास किया, जिनसे महाराणा राज सिंह पहले से ही विवाह करने का वचन दे चुके थे। महाराणा ने हस्तक्षेप कर चारुमती से विवाह किया, जिससे मुगल सम्राट और क्रोधित हो गया।


 * महाराजा राज सिंह प्रथम (मेवाड़):  महाराजा राज सिंह (शासनकाल 1652-1680) मेवाड़ के एक शक्तिशाली और स्वाभिमानी शासक थे। उन्होंने औरंगजेब की धार्मिक और विस्तारवादी नीतियों का कड़ा विरोध किया। बहादुरपुर का युद्ध, मुगल-मेवाड़ संघर्ष का एक हिस्सा था। यद्यपि यह युद्ध निर्णायक नहीं रहा, इसने महाराणा राज सिंह की मुगल सत्ता के खिलाफ प्रतिरोध की भावना को उजागर किया।



   * राजा जय ​​सिंह (मिर्ज़ा राजा जय सिंह):  मिर्ज़ा राजा जय सिंह (आमेर/जयपुर) मुगल सेना में एक महत्वपूर्ण सेनापति थे और उन्होंने औरंगजेब की सेवा में कई युद्धों में भाग लिया।  हालांकि, बहादुरपुर के युद्ध में उनकी भूमिका मेवाड़ के विरुद्ध मुगल सेना का नेतृत्व करने वाले सेनापति के रूप में थी,  न कि मेवाड़ की ओर से महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले शासक के रूप में। प्रश्न मेवाड़ की ओर से भूमिका पूछ रहा है।
















































































   * (B) नैणसी - (iv) वास्तुमंजरी:  यहाँ मुहणोत नैणसी का उल्लेख है जो 17वीं शताब्दी के मारवाड़ राज्य के दीवान और प्रसिद्ध इतिहासकार थे।  हालांकि वास्तुमंजरी  मुहणोत नैणसी की रचना नहीं है। वास्तुमंजरी 15वीं शताब्दी के संस्कृत ग्रंथकार सूत्रधार मंडन की रचना है जो वास्तुकला (Architecture) पर आधारित है।  प्रश्न में नैणसी की जगह मंडन होना चाहिए था या फिर सूची में नैणसी री ख्यात या मारवाड़ रा परगना री विगत होना चाहिए था।  फिर भी, विकल्पों के अनुसार नैणसी का मिलान वास्तुमंजरी से करना ही उचित होगा।



   * (D) अत्रि एवं महेश - (iii) कीर्तिस्तंभ प्रशस्ति: अत्रि भट्ट और उनके पुत्र महेश भट्ट 15वीं शताब्दी के संस्कृत विद्वान थे। उन्होंने कीर्तिस्तंभ प्रशस्ति (विजय स्तंभ शिलालेख) की रचना की। यह प्रशस्ति चित्तौड़गढ़ के विजय स्तंभ पर उत्कीर्ण है और इसमें महाराणा कुंभा की विजयों, उनकी उपाधियों और मेवाड़ राज्य के इतिहास का वर्णन है।
















































 * 1942 का अधिवेशन:  8 फरवरी, 1942 को मारवाड़ लोक परिषद का एक महत्वपूर्ण खुला अधिवेशन आयोजित किया गया था। इस अधिवेशन की अध्यक्षता जय नारायण व्यास ने की थी।  यह अधिवेशन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान और भारत छोड़ो आंदोलन के समय आयोजित किया गया था, इसलिए इसका विशेष महत्व था।  इस अधिवेशन में रियासत में उत्तरदायी शासन की मांग को और तेज करने का निर्णय लिया गया।




















   * (i) इसका मध्य भाग एक गोलाकार जैन गुंबद से ढका है। - संभावित रूप से सही: कुछ स्रोतों के अनुसार, श्रृंगार चंवरी मंदिर में एक गुंबद जैसी छत (dome-like ceiling) है, जिसे गोलाकार गुंबद के रूप में व्याख्या किया जा सकता है। हालांकि, इसे विशिष्ट जैन गुंबद कहना शायद थोड़ा अतिशयोक्ति होगी, क्योंकि इसमें हिन्दू और जैन दोनों शैलियों का मिश्रण दिखता है। यदि "गोलाकार गुंबद" का तात्पर्य सिर्फ एक गुंबदाकार छत से है, तो यह कथन सही हो सकता है। अधिक सटीक विवरण की आवश्यकता है, लेकिन विकल्पों के अनुसार इसे सही माना जा सकता है।






 * सही उत्तर का चयन: कथनों (i), (ii) और (iv) को सही मानने पर विकल्प (3) (i), (ii) और (iv) सबसे उपयुक्त उत्तर प्रतीत होता है। हालांकि, कथन (i) की भाषा थोड़ी अस्पष्ट है ("गोलाकार जैन गुंबद"), लेकिन संभवतः इसका तात्पर्य गुंबदाकार छत से है।  कथन (ii) और (iv) ऐतिहासिक और वास्तुशिल्प रूप से सटीक हैं। कथन (iii) स्पष्ट रूप से गलत है।  दिए गए विकल्पों में, विकल्प (3) सर्वाधिक संभावित सही उत्तर है, बशर्ते हम कथन (i) की व्याख्या उदारतापूर्वक करें।



























 * कथन (ii) आंशिक रूप से भ्रामक है: रंगमहल निश्चित रूप से उत्तरी राजस्थान में स्थित है (हनुमानगढ़ जिला)। यह प्राक्-हड़प्पा (Pre-Harappan) स्थल के रूप में मुख्य रूप से नहीं जाना जाता है। रंगमहल एक हड़प्पाकालीन और उत्तर-हड़प्पाकालीन स्थल है, जहां कुषाण और गुप्त काल के अवशेष भी मिले हैं।  इसे प्राक्-हड़प्पा कहना साइट की मुख्य पहचान को सही ढंग से नहीं दर्शाता। बेहतर होगा इसे प्रोटो-हड़प्पा कहना, यदि प्रारंभिक चरणों का जिक्र हो, पर प्रश्न में "is a Pre-Harappan archaeological site" भ्रामक है।










 * गोयनका हवेली, फतेहपुर: यह हवेली शेखावाटी के फतेहपुर में स्थित है और अपनी उत्कृष्ट भित्तिचित्रों (paintings) के लिए प्रसिद्ध है। यहीं पर "हाथी के रूप में कृष्ण और आठ गोपियाँ" नामक अद्वितीय चित्र पाया जाता है। यह चित्र कृष्ण लीला के दृश्यों को दर्शाता है, जिसमें गोपियों को हाथी के आकार में चित्रित किया गया है और कृष्ण उनके ऊपर विराजमान हैं। यह शेखावाटी चित्रकला शैली का एक अद्भुत उदाहरण है।




















* (C) राजशेखर - (i) प्रबंधकोश: राजशेखर 10वीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि और नाटककार थे।  प्रबंधकोश नामक पुस्तक का श्रेय राजशेखर सूरी को जाता है,  जो प्रबंध साहित्य का एक संग्रह है। यह ऐतिहासिक उपाख्यानों और कथाओं का संकलन है।  विकल्प में 'प्रबंधकोश' को 'प्रबंधन' के संदर्भ में दिया गया है, जो प्रबंध साहित्य के व्यापक अर्थ को दर्शाता है।


 * (D) चंद्रशेखर - (iv) शल्यचिकित्सक (सर्जन): यह विकल्प भ्रामक है।  चंद्रशेखर वैद्य नामक एक लेखक हुए हैं जिन्होंने सुरजनचरित्र नामक ग्रंथ लिखा है।  'शल्यचिकित्सक (सर्जन)' शब्द यहाँ पुस्तक के नाम के रूप में गलत दिया गया है, और लेखक चंद्रशेखर को सर्जन के रूप में इंगित करना भी भ्रामक है।  विकल्पों के अनुसार, इसे मजबूरीवश सुमेलित किया गया है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से त्रुटिपूर्ण प्रश्न है।  यहाँ  'शल्यचिकित्सक' के स्थान पर 'सुरजनचरित्र' होना चाहिए था, या 'प्रबंधकोश' के स्थान पर 'काव्यमीमांसा' या 'कर्पूरमंजरी' जैसे राजशेखर के प्रसिद्ध ग्रंथों का नाम होना चाहिए था।















 * (iv) आंशिक रूप से सत्य, प्रस्तुतिकरण अतिसरलीकरण है:  यह कहना कि पृथ्वी सिंह ने "गलती समझी और रियायतें दी" थोड़ा अतिसरलीकरण है। वास्तव में, किसानों के लगातार विरोध और दबाव के कारण जागीरदारों और मेवाड़ राज्य को कुछ रियायतें देनी पड़ीं।  तत्कालीन परिस्थितियों में रियायतें दबाव का परिणाम थीं, न कि केवल गलती समझने का।  परन्तु कथन का मूल भाव रियायतें देने की घोषणा से संबंधित है जो आंशिक रूप से सही है।









 * आभानेरी: अजमेर संग्रहालय में प्रदर्शित लिंगोद्भव मूर्ति आभानेरी से प्राप्त हुई थी। आभानेरी दौसा जिले में स्थित एक प्राचीन स्थल है जो अपनी चांद बावड़ी और हर्षत माता मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। हर्षत माता मंदिर में कई उत्कृष्ट मूर्तियां मिली हैं, जिनमें से एक लिंगोद्भव की मूर्ति भी है, जो अब अजमेर संग्रहालय में प्रदर्शित है।




































 * (1) धूनी - सीकर: गलत सुमेलित है।  धूनी नामक कोई विशेष रूप से प्रसिद्ध सौर ऊर्जा संयंत्र सीकर जिले में नहीं है। जबकि सीकर जिले में सौर ऊर्जा परियोजनाएँ हो सकती हैं, 'धूनी' को एक प्रमुख सौर ऊर्जा संयंत्र स्थल के रूप में पहचान नहीं मिली है।  सीकर जिला सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए उतना प्रसिद्ध नहीं है जितना कि पश्चिमी राजस्थान के जिले।



 * (3) गोरिर - झुंझुनू: सही सुमेलित हो सकता है। गोरिर गाँव झुंझुनू जिले में स्थित है और झुंझुनू भी सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए एक उभरता हुआ केंद्र है।  भले ही यह बाड़मेर या जैसलमेर जितना प्रसिद्ध न हो, गोरिर का झुंझुनू से संबंध सही हो सकता है।  वास्तव में, भडला-II सौर पार्क का विस्तार झुंझुनू तक भी हो रहा है, और गोरिर क्षेत्र में सौर परियोजनाएं संभव हैं।










 * (2) लूणी नदी बेसिन की पूर्वी सीमा 'काला भूरा डूंगर' है। सत्य हो सकता है। 'काला भूरा डूंगर' (काला भूरा पहाड़) अरावली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा हो सकता है जो लूनी नदी बेसिन की पूर्वी सीमा बनाता है। अरावली पर्वतमाला सामान्यतः पश्चिमी राजस्थान की नदियों के बेसिन की पूर्वी सीमा निर्धारित करती है।  हालाँकि इस विशिष्ट पर्वत श्रृंखला के नाम की पुष्टि करनी होगी, लेकिन पूर्वी सीमा के रूप में अरावली का भाग होना भौगोलिक रूप से




 * (3) यह राजस्थान के कुल जल निकासी क्षेत्र का 5.6 प्रतिशत भाग बहाती है। असत्य है। लूनी नदी राजस्थान के सबसे महत्वपूर्ण नदी प्रणालियों में से एक है, और इसका जल निकासी क्षेत्र 5.6% से कहीं अधिक है।  विभिन्न स्रोतों के अनुसार, लूनी नदी बेसिन राजस्थान के कुल जल निकासी क्षेत्र का लगभग 10-11% भाग कवर करती है।  5.6% आंकड़ा बहुत कम और गलत है।





































































































































































































































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(व्याख्या): भारत सरकार अधिनियम, 1919 (मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार) ने सीधे तौर पर महिलाओं को मताधिकार नहीं दिया।  इस अधिनियम के तहत, मताधिकार का निर्णय प्रांतीय विधानमंडलों पर छोड़ दिया गया था। मद्रास प्रेसीडेंसी, जिसे अब तमिलनाडु और आसपास के क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार देने में पहल की।  1921 में, मद्रास विधान परिषद ने संपत्ति योग्यता के आधार पर महिलाओं को मताधिकार प्रदान करने के लिए कानून पारित किया, इस प्रकार यह भारत में महिलाओं को मतदान का अधिकार देने वाला पहला प्रांत बन गया।  यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह 1919 अधिनियम के पूर्ण रूप से प्रभावी होने से पहले ही हो गया था। अन्य प्रांतों ने बाद में इसका अनुसरण किया।




(व्याख्या): मराठा नौसेना, जिसका विकास शिवाजी महाराज के समय में शुरू हुआ, पेशवाओं के शासनकाल में भी जारी रहा।  मराठा नौसेना में विभिन्न प्रकार के पद और अधिकारी थे। दिए गए विकल्पों में से, "सरतंदल" एक मराठा सैन्य और नौसैनिक पद था।  सरतंदल एक इकाई या टुकड़ी के कमांडर को कहा जाता था।  यह नौसेना और सेना दोनों में इस्तेमाल होने वाला पद था। अन्य विकल्प जैसे रामोशी एक समुदाय थे, दारखादर कोई ज्ञात मराठा नौसेना पद नहीं है, और बालुते एक ग्राम कारीगर प्रणाली थी, मराठा नौसेना से सीधे तौर पर जुड़े नहीं थे।




(व्याख्या): एजीजी का अर्थ है एजेंट टू द गवर्नर-जनरल। ब्रिटिश शासन के दौरान, राजपूताना (वर्तमान राजस्थान) जैसे क्षेत्रों के लिए गवर्नर-जनरल के प्रतिनिधि के रूप में एजीजी नियुक्त किए जाते थे।  राजपूताना के एजीजी का मुख्यालय शुरू में अजमेर में था।  गर्मी के मौसम में कामकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए, मुख्यालय को ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में अधिक ठंडे स्थान पर स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया। 1856 ईस्वी में, एजीजी मुख्यालय को अजमेर से माउंट आबू में स्थानांतरित कर दिया गया, और माउंट आबू राजपूताना के एजीजी का ग्रीष्मकालीन मुख्यालय बन गया।




(व्याख्या): दिल्ली सल्तनत में भूमि माप की विभिन्न इकाइयाँ प्रचलित थीं। गाज़-ए-सिकंदरी भूमि माप की एक महत्वपूर्ण इकाई थी, जिसे सिकंदर लोदी के शासनकाल में लोकप्रिय बनाया गया था।  गाज़-ए-सिकंदरी एक निश्चित लंबाई की छड़ी या गज होती थी, जिसका उपयोग भूमि की पैमाइश के लिए किया जाता था।  यह इकाई दिल्ली सल्तनत काल में भूमि राजस्व और प्रशासन में महत्वपूर्ण थी। अन्य विकल्प जैसे संगीत पुस्तकों का संग्रह, सिकंदर लोदी की आत्मकथा, या सिकंदर लोदी के समय कविताओं का संग्रह, गाज़-ए-सिकंदरी से संबंधित नहीं हैं।




(व्याख्या): इब्न बतूता 14वीं शताब्दी के प्रसिद्ध मोरक्को के यात्री और विद्वान थे। वह मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में भारत आए थे।  इब्न बतूता लगभग आठ वर्षों तक मुहम्मद बिन तुगलक के दरबार में रहे और दिल्ली में काजी (न्यायाधीश) के पद पर भी कार्य किया। मुहम्मद बिन तुगलक ने इब्न बतूता की विद्वता से प्रभावित होकर उन्हें यह महत्वपूर्ण पद सौंपा था।  इब्न बतूता के यात्रा वृत्तांत, 'रेहला' में उस समय के भारत के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन का विस्तृत विवरण मिलता है। अन्य विकल्प जैसे बलबन, फिरोज शाह तुगलक, और सिकंदर लोदी, इब्न बतूता के भारत आगमन के समय से पहले या बाद के शासक थे।




(व्याख्या): 19वीं शताब्दी की शुरुआत में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय रियासतों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना शुरू कर दिया था।  इसके लिए, उन्होंने विभिन्न रियासतों के साथ सहायक गठबंधन संधियां (Subsidiary Alliance Treaties) करना शुरू किया।  कोटा राज्य ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ 26 दिसंबर, 1817 को एक सहायक संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत कोटा राज्य ने ब्रिटिश सर्वोच्चता स्वीकार कर ली।  इस संधि के अनुसार, कोटा राज्य को ब्रिटिश सेना रखनी पड़ी और बदले में अंग्रेजों ने कोटा राज्य की सुरक्षा की जिम्मेदारी ली।  अन्य तिथियां, जैसे 28 अक्टूबर, 1817, 22 सितंबर, 1817 और 21 नवंबर, 1817, कोटा राज्य और अंग्रेजों के बीच संधि पर हस्ताक्षर करने की सही तिथि नहीं हैं।





(व्याख्या): कार्ल मार्क्स, प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक और अर्थशास्त्री, ने ब्रिटिश उपनिवेशवाद और भारतीय समाज पर कई लेख लिखे।  मार्क्स ने अपने अधिकांश लेख "न्यूयॉर्क डेली ट्रिब्यून" नामक अमेरिकी समाचार पत्र में प्रकाशित किए। इन लेखों में, मार्क्स ने ब्रिटिश शासन के भारत पर आर्थिक और सामाजिक प्रभावों, भारतीय समाज की संरचना, और उपनिवेशवाद के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण किया।  न्यूयॉर्क डेली ट्रिब्यून 19वीं शताब्दी का एक महत्वपूर्ण अमेरिकी समाचार पत्र था। अन्य विकल्प जैसे हेलसिगिन सनोमैट, द न्यूयॉर्क टाइम्स, और द टाइम्स, कार्ल मार्क्स के भारतीय समाज पर लेखों के प्रकाशन के लिए मुख्य रूप से जाने जाने वाले समाचार पत्र नहीं हैं।




(व्याख्या): मुगल प्रशासन में, विभिन्न प्रकार के अधिकारी थे जो शासन के विभिन्न पहलुओं का प्रबंधन करते थे।  'दीवान-ए-तन' या 'दीवान-ए-खालसा' मुगल साम्राज्य में एक महत्वपूर्ण वित्तीय अधिकारी था।  दीवान-ए-तन का मुख्य कार्य साम्राज्य के कर्मचारियों और सैनिकों को नकद वेतन का भुगतान करना था।  वह वेतन और जागीर (भूमि अनुदान) प्रशासन का भी प्रबंधन करता था, लेकिन नकद वेतन का भुगतान उसका प्राथमिक कार्य था। अन्य विकल्प जैसे दरबारी शिष्टाचार बनाए रखना, सैन्य प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करना, या आय की निगरानी करना, दीवान-ए-तन के प्राथमिक कार्यों में शामिल नहीं थे।




(व्याख्या): रज़्मनामा फारसी भाषा में अनुवादित एक प्रसिद्ध ग्रंथ है।  रज़्मनामा हिंदू महाकाव्य महाभारत का फारसी अनुवाद है।  मुगल सम्राट अकबर ने विभिन्न भारतीय ग्रंथों को फारसी में अनुवाद कराने के लिए एक विभाग बनाया था।  इसी परियोजना के तहत, महाभारत का फारसी में अनुवाद किया गया और इसे 'रज़्मनामा' (युद्ध की पुस्तक) नाम दिया गया।  रज़्मनामा में महाभारत की कहानियों और युद्धों का विस्तृत विवरण मिलता है। अन्य विकल्प जैसे लीलावती (गणित ग्रंथ), पंचतंत्र (नीति कथाएं), और रामायण (महाकाव्य), रज़्मनामा के अनुवाद का मूल ग्रंथ नहीं हैं।




(व्याख्या):  'साधु की जाति मत पूछो' यह प्रसिद्ध पंक्ति संत कबीरदास ने कही थी।  कबीरदास 15वीं शताब्दी के एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे।  उन्होंने जातिवाद और धार्मिक आडंबरों का विरोध किया और प्रेम, भाईचारा, और समानता का संदेश दिया।  यह पंक्ति जाति व्यवस्था की आलोचना करती है और सभी मनुष्यों को समान मानने का संदेश देती है। अन्य विकल्प जैसे पीपा, नानक, और रैदास, अन्य महत्वपूर्ण संत थे, लेकिन यह विशिष्ट पंक्ति मुख्य रूप से कबीरदास से जुड़ी है। हालाँकि रैदास (रविदास) ने भी जातिवाद के खिलाफ कई पद कहे हैं, लेकिन यह प्रसिद्ध पंक्ति विशेष रूप से कबीर की मानी जाती है।







(व्याख्या): इवेंजेलिकल विचारधारा 18वीं और 19वीं शताब्दी में प्रोटेस्टेंट ईसाई धर्म के भीतर एक प्रभावशाली आंदोलन था।  भारतीय समाज के संदर्भ में, इवेंजेलिकल विचारधारा मुख्य रूप से ईसाई धर्म के प्रसार और पश्चिमी शिक्षा के प्रचार का समर्थन करती थी।  इवेंजेलिकल ईसाई मानते थे कि ईसाई धर्म और पश्चिमी शिक्षा भारत को 'सभ्य' बनाने और 'उन्नति' के मार्ग पर ले जाने के लिए आवश्यक हैं।  इसलिए, वे भारत में ईसाई मिशनरियों का समर्थन करते थे और पश्चिमी शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देते थे।  हालांकि, इवेंजेलिकल विचारधारा 'प्राच्य संस्थानों के लिए सम्मान' का समर्थन नहीं करती थी।  वे अक्सर भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक संस्थानों को 'पिछड़ा' और 'मूर्तिपूजक' मानते थे और उन्हें पश्चिमी मूल्यों और ईसाई धर्म से बदलने का प्रयास करते थे।  इसलिए, कथन I और II सही हैं, जबकि कथन III गलत है।

































 * कैद खालसा: इस शब्द का सटीक अर्थ संदर्भ के बिना निर्धारित करना कठिन है।  'कैद' का अर्थ 'जब्त' या 'नियंत्रण' हो सकता है और 'खालसा' का अर्थ 'शाही डोमेन' या 'सरकार के सीधे नियंत्रण में भूमि' हो सकता है। संभवतः, 'कैद खालसा' उत्तराधिकार के बाद शाही खजाने में जमा की जाने वाली कोई राशि या शुल्क था, जो उत्तराधिकार कर का ही एक रूप हो सकता है।




















 * I. पेशकश: पेशकश एक प्रकार का नजराना या उपहार था, जो शासक या उच्च अधिकारियों को सम्मान या एहसान प्राप्त करने के लिए दिया जाता था। यह भूमि अनुदान का प्रकार नहीं था। यह नकद या वस्तु के रूप में हो सकता था, लेकिन भूमि अनुदान नहीं था। हालांकि कुछ संदर्भों में पेशकश को भूमि के बदले में दी जाने वाली राशि के रूप में भी देखा जा सकता है, लेकिन मुख्य रूप से यह भूमि अनुदान का प्रकार नहीं था।


 * II. बांठ:  'बांठ' शब्द का मुगल भूमि अनुदान के प्रकार के रूप में कोई ज्ञात अर्थ नहीं है। यह शब्द ऐतिहासिक दस्तावेजों और शब्दावली में मुगल भूमि अनुदान के प्रकार के रूप में व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है। यह स्थानीय या क्षेत्रीय शब्द हो सकता है, लेकिन मुगल काल के भूमि अनुदान के मुख्य प्रकारों में से नहीं है। कुछ क्षेत्रीय भाषाओं में 'बांठ' का अर्थ हिस्सा या विभाजन हो सकता है, लेकिन मुगल भूमि अनुदान के विशिष्ट संदर्भ में इसका अर्थ अस्पष्ट है।


निष्कर्ष: विकल्प (1) I, III, IV और (3) II, III, IV दोनों विकल्पों में से, विकल्प (1) अधिक निकटतम सही है क्योंकि मदद-ए-माश और सुयूरघल निश्चित रूप से मुगल भूमि अनुदान के प्रकार थे, और पेशाकशी कुछ हद तक भूमि से संबंधित हो सकता है।  बांठ के बारे में जानकारी का अभाव है और यह मुगल भूमि अनुदान का प्रकार होने की संभावना कम है। यदि सबसे सटीक उत्तर चुनना हो, तो (1) I, III, IV संभावित रूप से बेहतर उत्तर है, हालाँकि 'पेशाकशी' को भूमि अनुदान के प्रकार के रूप में शामिल करना पूरी तरह से सटीक नहीं है।


(संशोधन: प्रश्न और विकल्पों की अस्पष्टता के कारण, और 'पेशाकशी' की भूमि अनुदान के संदर्भ में संभावित अस्पष्ट भूमिका को देखते हुए, शायद (3) II, III, IV भी एक संभावित उत्तर हो सकता है यदि 'बांठ' को किसी क्षेत्रीय प्रकार के भूमि अनुदान के रूप में मान लिया जाए, हालाँकि  'मदद-ए-माश' और 'सुयूरघल' मुख्य और निर्विवाद मुगल भूमि अनुदान हैं)









































बाद में, टोडरमल मुगल सम्राट अकबर की सेवा में शामिल हो गए और मुगल साम्राज्य के वित्त मंत्री (दीवान-ए-अशरफ) के पद तक पहुंचे। अकबर के नवरत्नों में से एक के रूप में, उन्होंने मुगल साम्राज्य की राजस्व प्रणाली को व्यवस्थित करने और मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसमें दहसाला प्रणाली (दस वर्षीय बंदोबस्त) प्रमुख है।













 * (ii) इसमें, भारत के राज्य सचिव की परिषद को समाप्त कर दिया गया। - असंगत:  भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने भारत के राज्य सचिव के पद को बनाए रखा, लेकिन उनकी परिषद को समाप्त कर दिया गया।  इसलिए, कथन का भाग "परिषद को समाप्त कर दिया गया" सही है, लेकिन "राज्य सचिव को समाप्त कर दिया गया" गलत है।  हालांकि, यदि कथन का तात्पर्य केवल परिषद को समाप्त करने से है, तो यह संगत हो सकता है, लेकिन कथन अस्पष्ट है और त्रुटिपूर्ण माना जा सकता है.  (संशोधन -  कथन (ii)  असंगत  है, क्योंकि राज्य सचिव का पद बना रहा, सिर्फ परिषद समाप्त हुई, और यह कथन में अस्पष्ट रूप से प्रस्तुत है इसलिए इसे असंगत मानना उचित है)




निष्कर्ष: कथन (iii) असम में एक सदनीय प्रणाली स्थापित की गई थी निश्चित रूप से भारत सरकार अधिनियम, 1935 के साथ असंगत है। कथन (ii) भी असंगत माना जा सकता है, यदि इसे राज्य सचिव के पद को भी समाप्त करने के रूप में व्याख्या किया जाए, जो गलत है। हालाँकि, यदि कथन का तात्पर्य केवल परिषद की समाप्ति से है, तो यह संगत हो सकता है, लेकिन वाक्य रचना अस्पष्ट है।



(संशोधन -  पुनर्विचार करने पर, कथन (ii) को  असंगत मानना अधिक उचित है क्योंकि यह  अस्पष्ट  और  भ्रामक  है।  अतः, सबसे सटीक असंगत कथन  (ii) और (iii)  हैं।  लेकिन विकल्पों में  (1) ii, iii  विकल्प मौजूद नहीं है।  इसलिए, विकल्पों में से  (1) ii, iii  नहीं होने के कारण, और यदि सबसे  कम संगत  विकल्प चुनना हो, तो  (1) ii, iii  की अनुपस्थिति में  (4) iii, iv  उत्तर के रूप में कम से कम  (iii)  की असंगति को इंगित करता है, भले ही  (iv)  संगत हो।  विकल्पों में त्रुटि होने की संभावना है, और सबसे सटीक उत्तर  (1) ii, iii  होना चाहिए था, जो उपलब्ध नहीं है।)  विकल्प (1) ii, iii के उपलब्ध न होने की स्थिति में, और  (4) iii, iv  के विकल्प के मौजूद होने पर, यदि सबसे उपयुक्त उत्तर चुनना हो, तो शायद (4) iii, iv  को ही चुनना होगा, क्योंकि इसमें  (iii)  की असंगति शामिल है।  लेकिन यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि  (1) ii, iii  सबसे सटीक उत्तर होना चाहिए था, और विकल्पों में त्रुटि है।

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