चरित्र परिवर्तन की राह: जब मन भटके
- Dp sir (writer)
- Mar 9
- 3 min read
चरित्र परिवर्तन की राह: जब मन भटके
क्या आपका मन भी भटकता है? कभी कक्षा में बैठे-बैठे किसी दूर देश की सैर कर आता है, तो कभी ऑफिस में काम करते हुए पुरानी यादों में खो जाता है? हमारा मन तो मानो एक शरारती बच्चे की तरह है, जो कभी एक जगह टिक कर नहीं बैठता। और अक्सर जब मन भटकता है, तो हमें लगता है कि हम कुछ गलत कर रहे हैं, कि हमें अपने मन को काबू में रखना चाहिए, उसे शांत और स्थिर बनाना चाहिए।
लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि मन का भटकना वास्तव में इतना बुरा भी नहीं है जितना हम सोचते हैं? आज हम एक ऐसे विचार पर बात करेंगे जो शायद आपको थोड़ा चौंका दे, लेकिन इसमें चरित्र परिवर्तन और व्यक्तिगत विकास का गहरा रहस्य छुपा हुआ है।
मन का स्वभाव: भटकना
जैसा कि ऊपर दिए गए पाठ में बताया गया है, मन का स्वभाव ही भटकना है। यह कोई गलती नहीं है, न ही कोई कमजोरी। यह तो मन की प्रकृति है। जैसे पानी का स्वभाव बहना है, आग का स्वभाव जलना है, वैसे ही मन का स्वभाव है विचारों में घूमना, कल्पनाओं में उड़ना और इंद्रियों के अनुभवों को ग्रहण करना।
यह स्वाभाविक है कि हमारा मन इंद्रियों के माध्यम से आने वाली चीज़ों से संपर्क बनाए - देखना, सुनना, सूंघना, चखना, स्पर्श करना और सोचना। इसे 'फस्स' कहा जाता है। और जब मन इन वस्तुओं के संपर्क में आता है, तो भावनाएं उत्पन्न होती हैं - सुखद, दुखद या तटस्थ।
भटकते मन में छिपा है ज्ञान
अब यहाँ दिलचस्प बात यह है कि मन का भटकना, अगर सही तरीके से समझा जाए, तो हमारे लिए ज्ञान का स्रोत बन सकता है। प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु, ने हमें सिखाया कि हमें "खड़े होने, चलने, बैठने, सोने, खाने, पीने, काम करने, बोलने और सोचने" जैसी सामान्य गतिविधियों में भी सचेत रहना चाहिए।
उन्होंने सवाल किया: "कौन खड़ा है? कौन चलता है? कौन बैठता है? कौन सोता है? कौन खाता है? कौन पीता है? कौन काम करता है? कौन बोलता है?" उत्तर सरल है: शरीर यह सब करता है। और "कौन सोचता है?" मन सोचता है।
ज़रूरत है इस क्रिया को ध्यान से देखने की। देखने की कि यह सब अपने आप हो रहा है, हम नहीं कर रहे हैं। मन अपने आप ही इंद्रियों के अनुभवों से संपर्क बना रहा है, भावनाएं उत्पन्न हो रही हैं, विचार बन रहे हैं।
सावधानी की पतली रेखा
अब यहाँ एक महत्वपूर्ण मोड़ है। मन का भटकना दो रास्तों पर ले जा सकता है: ज्ञान या भ्रम। अगर हम सावधानी (mindfulness) के साथ मन को भटकने दें, यानी जागरूक रहकर देखें कि मन कहाँ जा रहा है, क्या सोच रहा है, क्या महसूस कर रहा है, तो यह ज्ञान की ओर ले जाता है। लेकिन अगर मन बिना सावधानी के भटकता है, विचारों और भावनाओं में खो जाता है, तो यह भ्रम है।
बुद्ध ने कहा, "बेखबर होने और जागरूक होने के बीच एक पतली रेखा है।" और कहा, "मन का स्वभाव भटकना है। हालांकि, बिना सावधानी के मन का भटकना दुख का कारण है। सावधानी के बिना मन का भटकना दुख का परिणाम है। जब मन भटकता है, यदि सावधानी बनी रहती है, तो इसे वैसा ही देखना जैसा वह है, यह महान मार्ग का विकास कर रहा है। सावधानी होने का परिणाम जब मन भटकता है, तो दुख का अंत होता है।"
चरित्र परिवर्तन का मार्ग
तो, मन को भटकने से डरना नहीं है। बल्कि, इसे एक अवसर के रूप में देखना है। जब मन भटकता है, तो सावधानीपूर्वक निरीक्षण करें। भावनाओं और विचारों को देखें, लेकिन उनमें खो न जाएं। बस साक्षी भाव से देखें, जैसे आप किसी नाटक को देख रहे हों।
यह अभ्यास धीरे-धीरे आपके चरित्र को बदल सकता है। यह आपको स्वयं-जागरूकता विकसित करने में मदद करता है। आप समझने लगते हैं कि आपका मन कैसे काम करता है, आपकी भावनाएं कैसे उत्पन्न होती हैं, और आपके विचार कैसे बनते हैं। आप अपने विचारों और भावनाओं के गुलाम नहीं रहते, बल्कि उनके मास्टर बन जाते हैं।
आज से ही करें अभ्यास
अगली बार जब आपका मन भटकना शुरू करे, तो उसे रोकने की कोशिश न करें। बस जागरूक हो जाएं। देखें कि आपका मन कहाँ जा रहा है। क्या सोच रहा है? क्या महसूस कर रहा है? इसे बस देखें, बिना किसी निर्णय के। यह साधारण सा अभ्यास आपके जीवन में अद्भुत बदलाव ला सकता है।
मन का भटकना कोई बाधा नहीं है, बल्कि चरित्र परिवर्तन और आत्म-ज्ञान की राह पर एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। सावधानी के साथ, हम अपने भटकते मन को ज्ञान और शांति का स्रोत बना सकते हैं।
Comments